सब एक-दूसरे को आईना दिखाते हैं
पर ख़ुद को कहाँ समझ पाते हैं
जो समझे नहीं समझाते हैं
गुरू-साधु-स्वामी कहलाते हैं
रात की रोशनी में सब हसीन है
दिन में दाग़ कहाँ छुप पाते हैं
हम भी आपसे शरीफ़ होते
पर हम न थोड़ा शरमाते हैं
चलो चलें कहीं और चलें
कहें राहुल जो रूक जाते हैं
4 comments:
आपकी लिखी रचना बुधवार 17 दिसम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
छोटी सी , बढ़िया सी कविता! यह सच है कि हमें अपनी shortcomings नहीं दिखतीं पर दूसरों की faults एक दम दिख जाती हैं।
इन lines में - "हम भी आपसे शरीफ़ होते, पर हम न थोड़ा शरमाते हैं" - "न" का प्रयोग बहुत अच्छा लगा।
"चलो चलें कहीं और चलें, कहें राहुल जो रूक जाते हैं" - haha - पहले जप-तप कीजिये, hotel में discourses दीजिये, फिर रुकने को कहेंगे तो शायद कोई रुक भी जाये!
बढ़िया रचना
सत्य कथन
Post a Comment