Thursday, December 4, 2014

मेरे घर के आसपास अभी भी ज़मीं बर्फ़ है

मेरे घर के आसपास अभी भी ज़मीं बर्फ़ है

तेरी चाहत, तेरी आरज़ू क्या सचमुच इतनी सर्द है?

कमरों में 
कैमरों में
अपने-अपने वाहनों में
हर कोई  क़ैद है
हाड़-माँस का पुतला ढूँढा तो मिलता होमलेस है

रोशनी है
चकाचौंध है
पेड़ हैं
पेड़ पर लगी लाईट्स हैं
देते हैं दान भी
पर क्या मन में नहीं कोई खोट है?

इधर
ठिठुरता है दिल
सिकुड़ता है दिमाग़ 
कटकटाते हैं दाँत
और उधर 
रेस्टोरेंट से आती है 
छुरी-कांटों की
फ़ाईन-चाईना से
खटर-पटर की आवाज़
और
हड्डियों को चीरता
डीन मार्टिन का गीत
"लेट ईट स्नो, लेट ईट स्नो, लेट ईट स्नो"

4 दिसम्बर 2014
सिएटल । 513-341-6798

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


2 comments:

Kailash Sharma said...

आज का कटु सत्य...मानव कितना असंवेदनशील हो गया है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

Anonymous said...

पहली दो lines बहुत बढ़िया लगीं:
"मेरे घर के आसपास अभी भी ज़मीं बर्फ़ है
तेरी चाहत, तेरी आरज़ू क्या सचमुच इतनी सर्द है?"

चाहे जीवन में कितनी भी चमक हो - wealth, comfort, beauty, success, fame - मगर दिल में warmth न हो, सुख-दुख बाँटने का समय न हो, ख़ुशी से कुछ देने की चाह न हो, अपनी ही ज़रूरतों में बँधा जीवन meaningless लगता है।

गाने की lines याद आयीं:

" किसी की मुसकराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है..."