मैं नर
ये नारी
और वो एन-आर-आई
पढ़कर मेरी आँख भर आई
कहाँ से कहाँ आ पहुँचे हैं हम
घर से भागे अभागे हैं हम
न क़ानून तोड़ा
न की बदमाशी
फिर भी ख़ुशी
करे आनाकानी
कहने को है सबकुछ
और पूरी आज़ादी
फिर भी मन
करे कानाफूसी
अनगिनत बंधन
अनगिनत सलाखें
जो पल-पल हमें
घर जाने से रोके
उमंगों के बादल
असमंजस के गैसू
घिरते हैं
बढ़ते हैं
न घटते हैं
न छँटते हैं
जो कहना है, करना है
न कहते हैं, न करते हैं
अपने-अपने बवंडर में घुटते हैं
22 जनवरी 2015
सिएटल | 513-341-6798
इस कविता की प्रेरणा यह समाचार है:
सोनाक्षी सिन्हा के भाई का विवाह एक एन-आर-आई की बेटी के साथ सम्पन्न हुआ
1 comments:
NRI और "भागे-अभागे" का wordplay अच्छा लगा। कहते हैं हमें वही मिलता है जो भाग्य में लिखा होता है। जो NRI बनते हैं शायद उनका अन्न-जल विदेश में लिखा होता है। सज़ा हमारे अपनों को मिलती है क्योंकि वे उम्रभर हमसे दूर रहते हैं। इसी तरह जिनके संयोग में एक दुसरे का साथ लिखा होता है वो कितने भी दूर हों, किसी भी देश में हों, मिल ही जाते हैं - जैसे मुम्बई में रहने वाले कुश सिन्हा को लंदन की तरुना अग्रवाल मिल गईं।
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