यह नव-वर्ष का कैसा शुभारम्भ है?
पहले उल्लुओं की तरह जागो
फिर ग़ैर-ज़िम्मेदारों की तरह उठो
और सारा दिन आलस करो
न काम न काज
सुस्त पड़ा सारा समाज
क्या हमारी यही मंशा है
कि सारा साल ऐसे ही गुज़रे?
बेवक़्त खाएं
बेवक़्त पीएँ
बेवक़्त सोएं
बेवक़्त उठें
सारा-सारा साल
आलस करें?
जो नहीं खाना चाहिए
उसे खाएं
जो नहीं पीना चाहिए
उसे पीएँ?
देर रात तक
शोर-शराबा करें?
राहुल उपाध्याय | 1 जनवरी 2015 | सिएटल
1 comments:
Haha - नहीं, नहीं, हमारी ऐसी मंशा बिलकुल नहीं कि सारा साल सुस्ती में गुज़रे! :) नए साल के पहले minute से मिलने की इतनी excitement थी कि उसका स्वागत किये बिना नींद नहीं आयी। अब चाहे नींद टूटे या आदत , हमने तो hello कर ली, नए साल ने भी हँस के हामी भरली! :)
आपको नए साल की और आने वाले हर दिन की बहुत सारी शुभकामनाएं!
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