गंदी और गंदी
कैसे हो गई
प्यारी-प्यारी नदिया
जाने सारी दुनिया
माने सारी दुनिया
टेढ़ी और मेढ़ी
दुनिया की बातें
सीधे और सादे
घी ये निकाले
जब और जैसा, दिखा इसे पैसा, इसने बटोरा
रो के मैं लिखू
दुखड़ा ये तेरा
बढ़ता ही जाए उधर
कचरा-ओ-कूड़ा
रोके न रूके, जग बैरी, ऐसा निगोड़ा
मोदी और जो भी
हैं गद्दी पे
इनके सारे वादे
पड़े रद्दी में
कब और किसने, किसका यहाँ, चाहा भला
(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
30 जनवरी 2015
सिएटल । 513-341-6798
मूल गीत यहाँ सुनें:
1 comments:
"जैसा/पैसा,"रोके/रुके,"गद्दी/रद्दी" - combinations अच्छे लगे। कविता पढ़कर मन में आया कि कविता का title "प्यारी-प्यारी नदिया" भी हो सकता था। Original गाना अच्छा लगा!
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