Sunday, June 21, 2015

तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो

तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो
तुम्हीं हो बंधु, सखा तुम्हीं हो

तुम्हीं ने मुझको निर्बल बनाया
तुम्हीं ने मुझको सम्बल दिलाया

तुम्हीं ने मुझको हैं दु:ख-दर्द बाँटे
तुम्हीं ने मुझको हँसना सिखाया

कहने को हैं जग में रिश्ते-नाते
तुम्हीं ने मुझको गले लगाया

भले भला हो, भले बुरा हो
तेरा ही नाम मेरे होंठों पे आया

पितृ दिवस, 21 जून 2015
सिएटल । 425-445-0827

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1 comments:

Anonymous said...

अच्छी कविता है। हमारे माता पिता कभी हमें दुःख नहीं दे सकते, निर्बल नहीं बना सकते। अगर इश्वर को हम माता पिता के रूप में सोचें, बंधू सखा के रूप में सोचें तो हम कैसे मान लें कि वो हमें दुःख बाँट सकते हैं? दर्द तो हमें जीवन में आता ही है। माता पिता की शरण में जाने से दर्द कम हो जाता है और उसे सहने में सहारा मिलता है। आपने ठीक कहा "भले भला हो, भले बुरा हो, तेरा ही नाम मेरे होंठों पे आया।"