मैं बचपन से ही कवि हूँ
कैलेण्डर के अलावा सूर्यास्त कहीं देखा नहीं था
तो कल्पना के घोड़े दौड़ाता था
कि सूरज जब डूबता होगा
तो समन्दर कितना उबल जाता होगा
और हाँ
डूबने के लिए समन्दर ज़रूरी है
26 जून 2015
सिएटल | 425-445-0827
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:55 PM
आपका क्या कहना है??
2 पाठकों ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: intense
2 comments:
वाह ! कितना सच कहा है आपने
डूबने के लिए समुन्दर तो ज़रूरी है
और कितने चंद खुशनसीब ऐसे होते होंगे जिन्हे समुन्दर मिलता होगा !!
बहुत सुन्दर
बचपन का भोलापन कितना प्यारा होता है! बड़े होकर, facts जानकर, हम knowledgeable तो बन जाते हैं मगर दुनिया को, सुंदरता को, हर चीज़ को analyze करने लगते हैं। Imagination, understanding, faith के लिए दिल भी चाहिए, सिर्फ analysis नहीं। यह line बहुत सही है: "डूबने के लिए समन्दर ज़रूरी है..."
Post a Comment