Friday, June 26, 2015

मैं बचपन से ही कवि हूँ


मैं बचपन से ही कवि हूँ

कैलेण्डर के अलावा सूर्यास्त कहीं देखा नहीं था
तो कल्पना के घोड़े दौड़ाता था
कि सूरज जब डूबता होगा
तो समन्दर कितना उबल जाता होगा

और हाँ 
डूबने के लिए समन्दर ज़रूरी है

26 जून 2015
सिएटल | 425-445-0827

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2 comments:

Anushka Yadav said...

वाह ! कितना सच कहा है आपने
डूबने के लिए समुन्दर तो ज़रूरी है
और कितने चंद खुशनसीब ऐसे होते होंगे जिन्हे समुन्दर मिलता होगा !!
बहुत सुन्दर

Anonymous said...

बचपन का भोलापन कितना प्यारा होता है! बड़े होकर, facts जानकर, हम knowledgeable तो बन जाते हैं मगर दुनिया को, सुंदरता को, हर चीज़ को analyze करने लगते हैं। Imagination, understanding, faith के लिए दिल भी चाहिए, सिर्फ analysis नहीं। यह line बहुत सही है: "डूबने के लिए समन्दर ज़रूरी है..."