सूरज
न जाने क्या कुकर्म किए हैं इसने
कि दिन भर आग उगलता है
और शाम को डूबने के लिए
चुल्लू भर पानी भी
नसीब नहीं होता है
कोई बचाने भी नहीं आता है
उल्टा उसके अवसान से ख़ुश होते हैं
उसके अवसान में शांति पाते हैं
दूर-दूर से दौड़े चले आते हैं
फ़ोटो खींचने
ड्राइंग रूम की दीवार सजाने
फ़ेसबुक की वॉल पे चिपकाने
ताकि बड़े गर्व से कह सके
कि देखो
एक कुकर्मी के अंत का दृश्य
कितना मनोहारी होता है
27 जून 2015
7 comments:
Sunset पर एक अलग perspective... कभी यह सोचा नहीं। अगर कोई आग उगलता है तो उसके जाने पर दुख कम होगा - यह तो समझ में आता है - मगर इतना प्रसन्न क्यों होना? जानेवाले ने हमें जो भी अच्छी moments दी हैं - कभी winter के दिनों में निकलकर थोड़ी गर्मी दी है - वह याद करते हुए, अच्छे मन से goodbye बोल देनी चाहिए और उसके आगे के सफर के लिए शांति की दुआ करनी चाहिए। मगर यह करना बहुत मुशकिल होता है...
Different perspective on Sun
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राहुल जी ,
जिसने प्राण भरे प्राणी में उसको कहें कुकर्मी
इससे ज्यादा और बुरा क्या सोचे कोई अधर्मी
अपनी अपनी सोच सोचने का अधिकार तुम्हें है
पर उसका तो कर्म यही जीवन दे रहा हमें है ॥
गाली ग्रीष्म में देते हैं पर शरद ऋतू जब आये
सभी चाहते सूरज चमके कुछ तो जाड़ा जाए
अपने तपकर जो सुख दे कैसे कुकर्म कहलाए
नहीं उगे जो हफ्ते भर तो सबके सब मर जाएँ ॥
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सूर्य को "कुकर्मी' मानने में मेरो भी असहमति है । किन्तु प्रत्येक व्यक्ति के अपने विचार हैं । आपकी चन्द पंक्तियाँ इस विषय में युक्तिसंगत हैं ।
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आ0 राहुल जी ने अपनी एक कविता में सूरज के कुछ "कुकर्मों" का ज़िक्र किया है...
अगर सूरज के 2-4 कुकर्मों का नाम गिना दें तो हम भी कुछ अपनी आस्था व विश्वास के बारे में सोचें....
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हम सभी का मत एक ही है कि सूरज सत्य है सनातन है शाश्वत है और हम सभी का जीवन है।जहाँ तक सवाल है कवि की सोच का तो वह आसपास के वातावरण या मन के भावों का दर्पण है एसी सोच कहाँ से आई मुझको इस बात पर आश्चर्य है।कहीं ये स्वयं को भीड से अलग दिखाने के लिए किया गया उपक्रम ही तो नहीं और यदि कारण ये नहीं है तो हमें गम्भीरता से
सोचने की आवश्यकता है कि एसी कहाँ कमी है कि इस तरह की सोच को जन्म दिया बहुत कुछ और भी कहने की इच्छा है मगर अभी केवल यही कि मैं राहुल जी के काव्य से असहमत हूँ ।
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सन्दर्भ --
हमें गम्भीरता से सोचने की आवश्यकता है कि एसी कहाँ कमी है कि इस तरह की सोच को जन्म दिया बहुत कुछ और भी कहने की इच्छा है मगर अभी केवल यही कि मैं राहुल जी के काव्य से असहमत हूँ ।
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राहुल जी ने कुछ लिखा, वह भी कविता में.
>>कविता होती ही इसलिए है, कुछ लिखने के लिए. यह कुछ बहुत विशाल होता है, सीमाहीन.
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पाठकों को कुछ अटपटा लगा
>>चलो, कोई बात नहीं. लिखा जाएगा तो अटपटापन भी कई बार झलकेगा ही.
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एक पाठक को लगा कि गम्भीरता से सोचने की आवश्यकता है कि कवि की ऐसी सोच को क्यों और किन परिस्थितियों ने दिया.
>> कवि का सौभाग्य है कि किसीने उसके बारे इतना गंभीर चिंतन किया. वरना आजकल तो गांधी, नेहरू, मोदी के बारे में भी कोई नहीं सोचता.
वैसे,
ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ क्यों हुआ, ................
https://www.youtube.com/watch?v=saApSghVCOU
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