Thursday, August 20, 2015

सारे जहाँ से अच्छा


सारे जहाँ से अच्छा 
हिन्दोस्ताँ हमारा
कहते हैं जगसे हम ये
करते हैं ख़ुद किनारा

सत्य, इन्द्र और सुंदर
रहते हैं घर से बाहर
बाक़ी बचे यहाँ वो
तकते वहाँ के अॉफ़र
हिन्दी हैं हम 
मगर हैं ध्येय विदेश हमारा

मतलब नहीं सीखाता
आपस में प्रेम करना
हर कोई चाहे करना
उल्लू सीधा अपना
रहते हैं साथ तब तक
जब तक है काम हमारा

बढ़ता ही जाए डॉलर
बढ़ता ही जाए लालच
गिरते हुए रूपये को
थामेगा कोई क्यूँकर
बदले हैं नोट जबसे
बदला है रूख हमारा

बहू-बेटी-माँ को डर है
हर पल यहाँ समर है
जंगल सा राज हर सू
कहने को महानगर है
जीतते सदा हैं गुण्डे
कहने को जनतंत्र हमारा

20 अगस्त 2015
सिएटल | 425-445-0827



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1 comments:

Anonymous said...

तेज़ रफ़तार जीवन होने की वजह से सबके पास समय की कमी तो दिखती ही है मगर साथ ही भावनाओं की भी कमी लगती है। रिश्तों की नीव तो भावनाओं में ही होती है। जब मन से भावनाएं कम होने लगती हैं तो काम बोझ लगने लगता है और हम shortcuts ढूँढने लगते हैं। कविता में दिए सब examples की जड़ शायद यही है।