Friday, June 17, 2016

मन में एक हूक सी उठती है


जब भी
होती है बरसात
लिपटता है बादल
महकती है धरती
स्मृति-पटल पर खींच जाती है
धुन
किसी भूले-बिसरे गाने की
मन में एक हूक सी उठती है
घर जाने की

डायबिटीज़ भी है
कोलेस्ट्रोल भी है
पर चाह कहाँ मिट पाती है
माँ के हाथ के खाने की

पकेगा तो
कोई न कोई तो खा ही लेगा
मेरे लिए तो
ख़ुशबू ही काफ़ी है
सूजी के भुन जाने की

कहती है माँ 
अब तू
कितना कम आने लगा है
क्या तुझे भी
लत लग गई कमाने की

इस उम्र में भी
यदा-कदा
निकल आते हैं आँसू 
बहनें होतीं तो
बहने न देतीं
कोशिश करतीं मनाने की

17 जून 2016
सिएटल | 425-445-0827
Http://tinyurl.com/rahulpoems

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