जब भी
होती है बरसात
लिपटता है बादल
महकती है धरती
स्मृति-पटल पर खींच जाती है
धुन
किसी भूले-बिसरे गाने की
मन में एक हूक सी उठती है
घर जाने की
डायबिटीज़ भी है
कोलेस्ट्रोल भी है
पर चाह कहाँ मिट पाती है
माँ के हाथ के खाने की
पकेगा तो
कोई न कोई तो खा ही लेगा
मेरे लिए तो
ख़ुशबू ही काफ़ी है
सूजी के भुन जाने की
कहती है माँ
अब तू
कितना कम आने लगा है
क्या तुझे भी
लत लग गई कमाने की
इस उम्र में भी
यदा-कदा
निकल आते हैं आँसू
बहनें होतीं तो
बहने न देतीं
कोशिश करतीं मनाने की
17 जून 2016
सिएटल | 425-445-0827
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