Thursday, December 15, 2022

जिसकी राहों में आँखें बिछाती हो

जिसकी राहों में आँखें बिछाती हो

जिसको अपना, अपना बताती हो

वो न आएगा, आएगा, आएगा 

झूठी-मूठी क्यों आस बढ़ाती हो


तब कहाँ थे, कहाँ थे ये जलवे तेरे

तब कहाँ थीं, कहाँ थीं अदाएं तेरी

जब वो तन्हा था, भूखा था, प्यासा था

तब न दी थी उसे तूने बाँहें तेरी


अब न वो हाल, ना वो नज़ारे है

बदले-बदले से सारे नज़ारे हैं

न है तू पाक, ना ही इरादे हैं

तू है इस पार, वो उस किनारे हैं


तेरे दामन पे दाग न आँच कोई 

तेरे मन में मगर एक बड़ी प्यास है

तू न पाएगी, न पाएगी बुझा उसे

तेरा दुख ही तेरी अब हर साँस है


राहुल उपाध्याय । 16 दिसम्बर 2022 । दिल्ली 






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