Sunday, April 13, 2008

21 वीं सदी का कवि सम्मेलन

कवि सम्मेलन में आए हैं तो सुनना ही पड़ेगा
फिर से वही घिसा-पीटा चुटकला सुनना ही पड़ेगा

लालू, मनमोहन, सोनिया को
सहते ही रहेंगे
आलू-समोसा-चाट आदि
खाते ही रहेंगे
जब टिकट है खरीदा
तो कम से कम पेट तो भरेगा
कवि सम्मेलन में …

कवि है वही कवि
जिसे न लाज शरम है
ताली की भीख मांगना
जिसका एक मात्र धरम है
गिर गिर के खुद को
एक दिन नष्ट करेगा
कवि सम्मेलन में …

कब तक चलेगा ये?
कब जा के रुकेगा?
कब तक भला श्रोता
ऐसे ही पैसे फूंकेगा?
blog और YouTube के आगे
सम्मेलन बेमौत मरेगा
कवि सम्मेलन में …

वाशिंगटन डी सी,
13 अप्रैल 2008
(शकील बदायुनी से क्षमा याचना सहित)

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1 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

राहुलजी,
एक ईमानदार कविता के लिये बधाई के साथ साथ शिकायत भी कि पूर्व सूचना नहीं दी.

सादर

राकेश

हर इक बार यही होता है
विदूषकों की लगे भीड़ जब मंचों पर तब कवि रोता है

बदर बाँट आपने देखी
भाषा के भी लखे हितैषी
सम्मेलन की मोहर लगा कर
भाषा की ऐसी की तैसी

और बिचारा काव्य तत्व्तब अपना परिचय भी खोता है
हर इक बार यही होता है

न तो आती तुकें मिलानी
मीटर क्या है, हम का जानी
लेकिन कविता करनी हमको
हमने ऐसी मन में ठानी

हमें आप सुनिये, तब ही तो भिजवाया हमने न्यौता है
हर इक बार यही होता है.