Monday, April 28, 2008

तुम

तुम मुझसे थोड़ी देर पहले मिलती
तो मैं तुम्हें पुनश्च: लिख कर
अपने साथ जोड़ लेता

लेकिन अब तो
लिफ़ाफ़ा भी बंद हो चुका है
मोहर भी लग चुकी है
और खत डब्बे में भी डल चुका है

तुम मुझसे थोड़ी देर पहले मिलती
और तुम 'टू-डायमेंशनल' होती
तो तुम्हें 'फोटोशाप' द्वारा
अपने परिवार के 'पोर्ट्रैट' में जोड़ लेता

लेकिन मूर्तियाँ बन चुकी है
झांकीयाँ सज चुकी है
परेड निकल रही है
और सब देख रहे हैं

तुम मुझसे थोड़ी देर पहले मिलती
तो न जाने क्या क्या हो जाता

सोचता हूँ
आजकल दिल की कई बीमारीयाँ सही हो जाती हैं
'ओपन-हार्ट सर्जरी' भी होती है
लेकिन अभी भी क्यों एक दिल में दो नहीं रह सकते हैं?

रह तो सकते हैं लेकिन किसी एक से यह कह नहीं सकते

सिएटल,
28 अप्रैल 2008
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Glossary:
पुनश्च: = ps, postscript
लिफ़ाफ़ा = envelop
मोहर = post-marked
'टू-डायमेंशनल' = two-dimensional
'फोटोशाप' = photoshop
'पोर्ट्रैट' = portrait
झांकीयाँ = floats, a vehicle bearing a display, usually an elaborate tableau, in a parade or procession
'ओपन-हार्ट सर्जरी' = open-heart surgery

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1 comments:

Anonymous said...

Bahut sundar kavita hai, Rahul. Is kavita ne apki ek aur kavita, Amar Prem, ki yaad dilayee.