कल तक जो बाते करते थे फूल-पत्तें और चाँद-सितारों की
आज बातों-बातों में दुनिया खड़ी कर बैठे है दीवारों की
हर-एक बात से मतलब की बू आती है आज
कल तक कद्र करते थे जिनके विचारों की
कल तक जो नारें लगाते थे आज़ादी के
आज बात कर रहे हैं बहिष्कारों की
कल तक जो दावा करते थे खुले मंच का
आज टोलियां बना रहे है गिने-चुने यारों की
न्यू यार्क
9 अप्रैल 2008
Wednesday, April 9, 2008
मोह पद का
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:12 PM
आपका क्या कहना है??
1 पाठक ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: world of poetry
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comments:
sahi vyangya kiya hai--yahi sthiti hai aaj ki-
Post a Comment