बातों में बात है
बात एक लाख की
जो करते हैं शक़
नहीं कर सकते हैं आशक़ी
क्या करेंगे वो इश्क़
जिन्हें खाता हो शक़
जिनके मन में हो खोट
कैसे पहुँचेगे वो दिल तक
दिल तो समझे बस बातें जज़बात की
दायें भी देखें
बाएँ भी देखें
हर तरफ़ देख कर
पाँसा जो फ़ेंके
वो जीत भी जाए तो ऐसी जीत किस काम की
शक़ ने इस कदर
जकड़ा उन्हें
कि मैं था प्रेम
लगा प्रेम चोपड़ा उन्हें
ऐसी भी क्या दोस्ती जो दोस्ती हो बस नाम की
न आप हैं शक़्क़ी
न आप हैं शक़्क़ी
हम सब हैं भरोसेमंद
ये बात है पक्की
मैं तो बात कर रहा हूँ इस दुनिया जहान की
सिएटल,
11 सितम्बर 2008
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आशक़ी = आशिक़ी, प्रेम
Thursday, September 11, 2008
शक़
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:58 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: relationship
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3 comments:
हमें शक हो रहा है आजकल प्रेम के पत्ते फ़ेंटे जा रहे हैं!
"ये बात है पक्की
मैं तो बात कर रहा हूँ इस दुनिया जहान की"
लगता तो नहीं है कि पूरी तरह से इस दुनिया जहान की बात हो रही है!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
Bahut hi funny tha, Rahul - Prem laga Prem Chopra :-)
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