मेरा महबूब भी
कितनी बड़ी तोप है
आँखें चार किए हुए
हुए नहीं चार दिन
और हज़ारों खंजर का
थोप देता आरोप है
काश
ये मैं पहले जान लेता
कि जो दे देता है दिल
वही फिर ले लेता है जान
जब बरसता
उसका प्रकोप है
पहले
वो जब खुश था
तो रेन-फ़ारेस्ट की तरह सब्ज़ था
आजकल
गुस्सा है
तो ठंडा-ठंडा युरोप हैं
जल्लाद से भी बढ़कर
अगर कोई है
तो वो मेरा माशूक़ है
बिना अंतिम इच्छा पूछे ही
खींच लेता वो रोप है
सिएटल,
22 सितम्बर 2008
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रेन-फ़ारेस्ट = rain forest
सब्ज़ = हरा-भरा
युरोप = Europe
रोप = rope, रस्सी
Monday, September 22, 2008
हज़ार खंजर
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:07 PM
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Labels: relationship, valentine
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5 comments:
जल्लाद से भी बढ़कर
अगर कोई है
तो वो मेरा माशूक़ है
बिना अंतिम इच्छा पूछे ही
खींच लेता वो रोप है
" wah, kya kehne.."
Regards
achcha laga
जल्लाद से भी बढ़कर
अगर कोई है
तो वो मेरा माशूक़ है
बिना अंतिम इच्छा पूछे ही
खींच लेता वो रोप है
बढिया लिखा।
बहुत बढिया...
khoob.........
Good to see a poem like this...
Comprising of 2 languages...
Nice !!
achha likha hai....
Do visit http://tanhaaiyan.blogspot.com
When free....
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