Friday, December 5, 2008

मुझे एक बटन चाहिए

माउस की कुछ क्लिक्स हुई
और उसका नाम-ओ-निशान मिट गया
कांटेक्ट्स से निकाला
तो मैसेंजर से भी हट गया
मोबाईल के भी कुछ बटन दबाए
और उसका वजूद
हमेशा-हमेशा के लिए
मिट गया

जो चिट्ठियाँ हमने
एक दूसरे को लिखी थी
पलक झपकते ही
बिट्स और बाईट्स की
दुनिया में खो गई

कितना आसान है
कितनी सुविधा है
मशीन की दुनिया में
बस थोड़ा सा परिश्रम
और
पल में सब कुछ
हवा हो जाता है

कहते हैं कि
शरीर भी
शरीर नहीं
एक मशीन है

छोटा या बड़ा
चाहे कैसा भी निवाला लो
पेट में जाते ही
हो जाता महीन है

खट्टा या मीठा
चाहे जो भी खाओ
हलक से नीचे उतरते ही
हो जाता स्वादहीन है

जो भी ये पाता है
उसे आत्मसात कर लेता है
उनसे
खून
पसीना
गीजड़
बाल
नाखून
सब बना लेता है

कहते हैं कि
शरीर शरीर नहीं
एक मशीन है
और
आउटसोर्स के ज़माने में
इसका उत्पादन भी
सबसे ज्यादा
कर रहा चीन है

काश
इसमें भी
एक बटन होता
कि
जब जिसे चाहा
उससे मोहब्बत कर ली
जब जिसे चाहा
उससे नफ़रत कर ली
जब जिसे चाहा
उसे भुला दिया

सिएटल,
5 दिसम्बर 2008
==================
माउस = mouse
क्लिक्स = clicks
कांटेक्ट्स = contacts
मैसेंजर = instant messenger (chat)
मोबाईल = mobile, cell phone
बिट्स = bits
बाईट्स = bytes
आउटसोर्स = outsource

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3 comments:

सुशील छौक्कर said...

आप कैसे है। क्या खूब वर्णन किया मशीनीकरण का। बहुत खूब। तब से अब जाकर आपका ब्लोग देख पाया हूँ। 15, 20 दिन कम्पूटर ही खराब रहा फिर दो एक दिन चला तो वायरस आ गया तो अब जाके पूरी तरह से चल पाया है। इसलिए आज ही पढा आपका ब्लोग।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

काश
इसमें भी
एक बटन होता
कि
जब जिसे चाहा
उससे मोहब्बत कर ली
जब जिसे चाहा
उससे नफ़रत कर ली
जब जिसे चाहा
उसे भुला दिया
ha..ha..ha..ha..nahin honaa chahiye...nahin honaa chaahiye naa...bas kah diya haan...

भगीरथ said...

अच्छी कविता है।शिल्प में नया प्रयोग है
http://gyansindhu.blogspot.com