Wednesday, December 24, 2008

क्रिसमस

छुट्टीयों का मौसम है

त्योहार की तैयारी है

रोशन हैं इमारतें

जैसे जन्नत पधारी है

 

कड़ाके की ठंड है

और बादल भी भारी है

बावजूद इसके लोगो में जोश है

और बच्चे मार रहे किलकारी हैं

यहाँ तक कि पतझड़ की पत्तियां भी

लग रही सबको प्यारी हैं

दे रहे हैं वो भी दान

जो धन के पुजारी हैं

 

खुश हैं खरीदार

और व्यस्त व्यापारी हैं

खुशहाल हैं दोनों

जबकि दोनों ही उधारी हैं

 

भूल गई यीशु का जन्म

ये दुनिया संसारी है

भाग रही उसके पीछे

जिसे हो हो हो की बीमारी है

 

लाल सूट और सफ़ेद दाढ़ी

क्या शान से संवारी है

मिलता है वो माँल में

पक्का बाज़ारी है

 

बच्चे हैं उसके दीवाने

जैसे जादू की पिटारी है

झूम रहे हैं जम्हूरें वैसे

जैसे झूमता मदारी है

 

राहुल उपाध्याय | दिसम्बर 2003 | सेन फ़्रांसिस्को


 

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6 comments:

Anonymous said...

बहुत ही प्यारी रचना...

राजीव तनेजा said...

आपको भी बड़े दिन की बहुत-बहुत बधाई....


आपकी रचनाएँ तो हमेशा ही बढिया होती हैँ..

Shastri JC Philip said...

ईसा जयंती की बहुत अधिक शुभकामनायें!!

ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि सन 2009 आपके
जीवन का सबसे अच्छा वर्ष हो तथा आपको पारिवारिक,
सामाजिक, एवं पेशाई समृद्धि मिले!

सस्नेह -- शास्त्री

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

rachna to khoobsoorat hai, lekin tyohar kisi ka bhi ho, anand vyaparion ko hi hota hai aur bachchon ko

Mansoor ali Hashmi said...

राह चलते सबसे मिला
sachmuch aap raah chalte kai sachchaiyon se awgat kara gaye.dhanyawad.

m.hashmi.
[mansooralihashmi.blogspot.com]

Anonymous said...

rahul ji aap ka blog dekh kai acha laga. aap ki kavta apratim hai.mai bhi bloging karta hoon.aap ka merai blog pai swagat hai.
www.onlinehindijournal.blogspot.com