छुट्टीयों का मौसम है
त्योहार की तैयारी है
रोशन हैं इमारतें
जैसे जन्नत पधारी है
कड़ाके की ठंड है
और बादल भी भारी है
बावजूद इसके लोगो में जोश है
और बच्चे मार रहे किलकारी हैं
यहाँ तक कि पतझड़ की पत्तियां भी
लग रही सबको प्यारी हैं
दे रहे हैं वो भी दान
जो धन के पुजारी हैं
खुश हैं खरीदार
और व्यस्त व्यापारी हैं
खुशहाल हैं दोनों
जबकि दोनों ही उधारी हैं
भूल गई यीशु का जन्म
ये दुनिया संसारी है
भाग रही उसके पीछे
जिसे हो हो हो की बीमारी है
लाल सूट और सफ़ेद दाढ़ी
क्या शान से संवारी है
मिलता है वो माँल में
पक्का बाज़ारी है
बच्चे हैं उसके दीवाने
जैसे जादू की पिटारी है
झूम रहे हैं जम्हूरें वैसे
जैसे झूमता मदारी है
राहुल उपाध्याय | दिसम्बर 2003 | सेन फ़्रांसिस्को
6 comments:
बहुत ही प्यारी रचना...
आपको भी बड़े दिन की बहुत-बहुत बधाई....
आपकी रचनाएँ तो हमेशा ही बढिया होती हैँ..
ईसा जयंती की बहुत अधिक शुभकामनायें!!
ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि सन 2009 आपके
जीवन का सबसे अच्छा वर्ष हो तथा आपको पारिवारिक,
सामाजिक, एवं पेशाई समृद्धि मिले!
सस्नेह -- शास्त्री
rachna to khoobsoorat hai, lekin tyohar kisi ka bhi ho, anand vyaparion ko hi hota hai aur bachchon ko
राह चलते सबसे मिला
sachmuch aap raah chalte kai sachchaiyon se awgat kara gaye.dhanyawad.
m.hashmi.
[mansooralihashmi.blogspot.com]
rahul ji aap ka blog dekh kai acha laga. aap ki kavta apratim hai.mai bhi bloging karta hoon.aap ka merai blog pai swagat hai.
www.onlinehindijournal.blogspot.com
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