मॉल में माल का
अम्बार लगा है
हर ज़रुरत का
बाज़ार लगा है
चारों ओर कमी
किसी बात की नहीं
है सब कुछ यहाँ
मगर शांति नहीं
मैं हूँ यहाँ
मेरा दिल है कहीं
मैं खुश रह सकूँ
ऐसी 'पिल' है कहीं?
शायद नहीं, मगर
आत्मा मानती नहीं
दर दर की खाक
वरना छानती नहीं
दिल हो कहीं
और दिमाग हो कहीं
जैसे सुर हो कहीं
और साज़ हो कहीं
ऐसी सरगम
किसी काम की नहीं
शाश्वत सत्य है ये
इसमें भ्रांति नहीं
जानवर और इंसां में है
आग का फ़र्क
सालों से सुना है
यही एक तर्क
कि आग न होती तो
खिचड़ी पकती नहीं
दुनिया में बसती
एक भी बस्ती नहीं
चाहे मानो सच इसे
चाहे मानो झूठ
आग और राख का है
रिश्ता अटूट
ऐसी कोई हस्ती नहीं
जिसपे ये हँसती नहीं
ऐसी कोई शह नहीं
जो राख बनती नहीं
सभ्यता जन्मी थी
जब आग थी मिली
या वैमनस्य की
नई राह थी मिली?
आग न होती तो
होती क्रांति नहीं
मन होता शांत
होती क्लांति नहीं
सिएटल,
6 जनवरी 2008
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मॉल = mall
पिल = pill
इंसां = इंसान
वैमनस्य = दुश्मनी
क्लांति = थकावट
4 comments:
एक साथ इतना कुछ कह गए। सच। बहुत खूब।
बहुत अच्छे राहुल भैया.गागर में सागर
सभ्यता जन्मी थी
जब आग थी मिली
या वैमनस्य की
नई राह थी मिली?
राहुल जी सच कहा आपने....आपकी सोच की इस दिशा से कुछ हमें भी अलग सा मगर अच्छा सा महसूस हुआ......!!
आग न होती तो
होती क्रांति नहीं
मन होता शांत
होती क्लांति नहीं
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना . आभार
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