(http://www.youtube.com/watch?v=ALdNmdp5ibg)
प्रश्न कई हैं
उत्तर यही
तू ढूंढता जिसे
है वो तेरे अंदर कहीं
जो दिखता है जैसा
वैसा होता नहीं
जो बदलता है रंग
वो अम्बर नहीं
मंदिर में जा-जा के
रोता है क्यूँ
दीवारों में रहता
वो बंधकर नहीं
बार बार घंटी
बजाता है क्यूँ
ये पोस्ट-आफ़िस
या सरकारी दफ़्तर नहीं
सुनता है वो
तेरी भी सुनेगा
उसे कह कर तो देख
जो पत्थर नहीं
ऐसा नहीं
कि वो देता नहीं
तू लपकेगा कैसे
जो तू तत्पर नहीं
लम्बा सफ़र है
अभी से सम्हल
सम्हलने की उम्र
साठ-सत्तर नहीं
बहता है जीवन
रूकता नहीं
जीवन है नदिया
समंदर नहीं
सूखती है, भरती है
भरती है, सूखती है
एक सा रहता
सदा मंजर नहीं
चलती है धरती
चलते हैं तारें
धड़कन भी रुकती
दम भर नहीं
बढ़ता चला चल
मंज़िल मिलेगी
जीवन का गूढ़
मंतर यही
सिएटल 425-445-0827
23 जनवरी 2009
Friday, January 23, 2009
प्रश्न कई हैं
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:52 AM
आपका क्या कहना है??
7 पाठकों ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
अच्छी कविता...सच्ची कविता
अच्छी रचना..;
तू ढूंढता जिसे
है वो तेरे अंदर कहीं
बहुत सुन्दर कविता
Other comments from email:
अति सुन्दर और सार्थक।
Another comment:
bahut umda adarniya Rahul ji.
From email:
bsht umda adarniya Rahul ji
From email:
अति सुन्दर और सार्थक।
Post a Comment