खिलते हैं फूल
बिखेरते हैं रंग
गाँव-गाँव
गली-गली
उड़ती है पतंग
इसके होते ही शुरू
होता है शरद का अंत
इस पर लिख कर गए
कवि निराला और पंत
मंदबुद्धि मैं
और आप अकलमंद
आप ही सुलझाए
मेरे मन का ये द्वंद
बस के पीछे तो होता है
बस काला धुआँ
फिर इसका नामकरण
क्यों ऐसा हुआ?
व और ब में कभी होता होगा फ़र्क
आज तो भाषा का पूरा बेड़ा है गर्क
गंगा को गङ्गा को लिखने वाले बचे हैं कम
ङ और ञ को कर गई बिंदी हजम
हिंदी और हिंदीभाषी का होगा शीघ्र ही अंत
ऐसी घोषणा कर रहे हैं ज्ञानी-ध्यानी-महंत
ब-नाम से हम-तुम आज पहचानते जिसे
बोलो क्या कहते थे ॠषि व संत उसे?
सिएटल,
28 जनवरी 2009
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Wednesday, January 28, 2009
पहेली 28
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5 comments:
बसतं.............
ब-नाम से हम-तुम आज पहचानते जिसे
बोलो क्या कहते थे ॠषि व संत उसे?
"बसतं"
regards
बसंत.....
rajeev ji vasant ho ya ho vasant man me phool khilne chahiye bas ....ant
बसतं.............
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