मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर
मैं औरों की तरह नहीं हूँ
कि घर में कबाड़ इकट्ठा किए जा रहे हैं
जैसे कि दूध खतम हो गया
तो बोतल में दाल भर ली
बिस्किट खतम हो गए
तो डब्बे में नमकीन भर लिया
अखबार पुराना हो गया
तो उससे किताब पर कवर चढ़ा लिया
या अलमारी में बिछा दिया
इतना भी क्या मोह?
कब तक पुरानी यादों को ढोता रहे कोई?
मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर
फ़ेंकता भी हूँ तो बड़े एहतियात के साथ
पर्यावरण की चिंता जो है
यहाँ कागज़
यहाँ काँच
यहाँ प्लास्टिक
और यहाँ माता-पिता
एक वक्त ये भी बहुत काम के थे
माँ दूध पिलाती थी
लोरी सुनाती थी
पिता गोद में खिलाते थे
कंधों पे बिठाते थे
और अब
माँ दिन भर छींकती है, कराहती है
पिता रात भर खांसते हैं, बड़बड़ाते हैं
मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर
सिएटल 425-445-0827
8 फ़रवरी 2009
Sunday, February 8, 2009
मुझे सफ़ाई पसंद है
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:47 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: Anatomy of an NRI, August Read, March Read, March2, Mother's Day, new, relationship, TG
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6 comments:
maarmki rachna hai, aankhen nam ho gayin.
सोचने पर मजबूर करती रचना ....
bahut badhiuya!
Rahul JI, Ati uttam rachana hai, apko koti koti badhaieya.
Subhkamanao saheet
VIJENDRA SAINI
BANGALORE
09449047495
Rahul JI, Ati uttam rachana hai, apko koti koti badhaieya.
Subhkamanao saheet
VIJENDRA SAINI
BANGALORE
09449047495
Rahul JI, Ati uttam rachana hai, apko koti koti badhaieya.
Subhkamanao saheet
VIJENDRA SAINI
BANGALORE
09449047495
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