मैं कोई भीष्म पितामह तो नहीं
लेकिन इतना कमजोर भी नहीं
कि तुम फोन करो
और मैं फोन उठा लूँ
तुम
एक बार
फोन कर के तो देखो
मैं कोई तपस्वी तो नहीं
लेकिन इतना गया-गुज़रा भी नहीं
कि तुम मुस्कराओ
और मैं पिघल जाऊँ
तुम
एक बार
मुस्करा कर तो देखो
मैं कोई देशभक्त तो नहीं
लेकिन एक एन-आर-आई भी नहीं
कि तुम चंद सिक्के दो
और मैं देश छोड़ दूँ
तुम
एक बार
चंद सिक्के दे कर तो देखो
सिएटल.
7 फरवरी 2009
Saturday, February 7, 2009
मेरी परीक्षा ले कर तो देखो
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:46 PM
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Labels: Anatomy of an NRI, new, nri, relationship, TG
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7 comments:
लगे रहो राहुल भाई!
तब सिएटल में क्या कर रहे हैं हैं राहुल भाई पधारो न आपणो देश !
अरविंद भाई
वापस न आने के कई बहाने हैं.
मिसाल के तौर पर यह एक -
वापसी
ऐसा ही होना चाहिए जी.
भाई जानदार रचना .....बहुत ही अच्छी
....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सचमुच इन्सान को होना भी ऎसा ही चाहिए.
वाह राहुल भैया.
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