जब जब तुमसे मिलने आता हूँ
तो सोचता हूँ
तुम न मिलो तो ही अच्छा है
जब जब तुमसे मिलता हूँ
तो सोचता हूँ
तुम जुदा न हो तो ही अच्छा है
मैं इतने दिनों तक
हैरान था
परेशान था
कि तुम ने मुझे स्वीकारा नहीं
तो क्यूँ ठुकराया भी नहीं?
अब समझ में आया कि
असली प्यार तो वही है
जिसमें चाहत अभी बाकी है
तुम मुझसे मिलती रहना
मगर मेरी हरगिज़ न बनना
अब समझ में आया कि
असली प्यार तो वही है
जो वर्जित है
तुम मुझसे मिलती रहना
मगर वैध रिश्ता हरगिज़ न बनाना
सच तो यही है कि
प्रेमी-प्रेमिका के मिलाप के साथ ही
अक्सर प्रेम कहानी खत्म हो जाती है
तुम स्वीकारती
तो चाहत खत्म हो जाती
तुम ठुकराती
तो नफ़रत हो जाती
ये आग जो लगी हुई है
इसे बनाए रखना
शांत कर के
इसे राख हरगिज़ न होने देना
मैं चोरी-छुपे
सब के सामने
तुमसे मिलता रहूँगा
तुम्हें निहारता रहूँगा
तुम्हें चाहता रहूँगा
पर कभी नहीं कहूँगा
कि तुम बहुत सुंदर हो
कि तुम मेरे दिल में बसी हो
कि मुझे तुम से प्यार है
क्यूँकि जो बात हम कह नहीं पाते
वो दिल, दिमाग और ज़ुबान पर
हमेशा रहती है
अगर कह दिया तो
भूल जाऊँगा कि कभी
मैंने तुमसे ये कहा था
न कहूँ तो
हमेशा याद रहेगा कि कभी
मैंने तुम से ये कहा नहीं
Saturday, February 14, 2009
अमर प्रेम
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:55 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: August Read, new, relationship, valentine
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2 comments:
अच्छा विरोधाभास है, लेकिन सच्चाई भी है.
Good one
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