न थी
न हैं
न होंगी कभी
सांसों में मेरी
सांसे तेरी
फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
खुशबू
फूलों में तेरी
न थे
न हैं
न होंगे कभी
गेसू तेरे
कांधों पे मेरे
फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
अम्बर पर
बादल घनेरे
न था
न है
न होगा कभी
चेहरा तेरा
हाथों में मेरे
फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
दुआ
हाथों में मेरे
न थे
न हैं
न होंगे कभी
गालों पे तेरे
चुम्बन मेरे
फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
सपनों में
साए तेरे
न थी
न है
न होगी कभी
दुनिया तेरी
दुनिया मेरी
फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
दूरी
तुझसे मेरी
सिएटल,
17 फ़रवरी 2008
Tuesday, February 17, 2009
एक तरफ़ा प्यार
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:35 PM
आपका क्या कहना है??
7 पाठकों ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: new, relationship, worship
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
nahut sundar bahut lazabaab sach main mazaa aa gaya ..
kabhi mere blog par dastak den
http://manoria.blogspot.com
लेकिन हम तो कमेन्टेयाते रहेंगे.
dil ko choo liya aapke ek tarfa pyar ne.
इस दिलकश रचना के लिए ...बधाई.
नीरज
बहुत ख़ूब.
बहुत सुन्दर दिलकश रचना ...बधाई.
Kavita bahut sundar hai, Rahul. Yeh bhi sundar baat hai ki aapne kavita ko "Worship" ki category mein tag kiya hai. Very touching...
Post a Comment