समाचार - 93 वर्षीय अमीर व्यक्ति की अपने ही घर में ठंड से ठिठुर कर मौत हो गई। कारण? वो अकेला था।
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रहते हैं यारो वे भी उदास
रोटी, कपड़ा, घर जिनके पास
रहते हैं यारो वे भी उदास
सुख-सुविधा के लिए
पाई-पाई जोड़ते हैं
काम जो देता है
उसके हाथ-पाँव जोड़ते हैं
आस-पड़ोस से
मुख मोड़ लेते हैं
खून का रिश्ता तक
भाई-भाई तोड़ देते हैं
रुपयों-पैसों से ही मिलता सुख नहीं
समझ में आता है जब बचता कुछ नहीं
अपना न हो
जब कोई पास
लाख कमा लो
मन रहता उदास
दुकान-दुकान
सब सामान मिले
बात जो समझे
नहीं वो इन्सान मिले
रोटी, कपड़ा, घर जिनके पास
रहते हैं यारो वे भी उदास
सिएटल,
31 जनवरी 2009
हम सब एक है
स्विच दबाते ही हो जाती है रोशनी
सूरज की राह मैं तकता नहीं
गुलाब मिल जाते हैं बारह महीने
मौसम की राह मैं तकता नहीं
इंटरनेट से मिल जाती हैं दुनिया की खबरें
टीवी की राह मैं तकता नहीं
ईमेल-मैसेंजर से हो जाती हैं बातें
फोन की राह मैं तकता नहीं
डिलिवर हो जाता हैं बना बनाया खाना
बीवी की राह मैं तकता नहीं
खुद की ज़रुरते हैं कुछ इतनी ज्यादा
कारपूल की चाह मैं रखता नहीं
होटले तमाम है हर एक शहर में
लोगों के घर मैं रहता नहीं
जो चाहता हूं वो मिल जाता मुझे है
किसी की राह मैं तकता नहीं
किसी की राह मैं तकता नहीं
कोई राह मेरी भी तकता नहीं
कपड़ो की सलवट की तरह रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं
रिश्ता यहाँ कोई कायम रहता नहीं
तत्काल परिणाम की आदत है सबको
माइक्रोवेव में तो रिश्ता पकता नहीं
किसी की राह मैं तकता नहीं
कोई राह मेरी भी तकता नहीं
सिएटल
19 दिसम्बर 2007
Tuesday, February 3, 2009
मौत का मीटर - एक समाचार, दो कविताएँ
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:29 PM
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1 comments:
सत्य वचन, महाराज, आपकी देखा-दूनी दो ठो मैंने भी पैरोडी खींच मारी.
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