न मैं आम हूँ
न मैं ख़ास हूँ
और न ही मैं खाँसता हूँ
न मुझे टी-बी का रोग है
और न ही सी-एम बनने का शौक़ है
तुमने
कुछ भाषण दिए
कुछ पोस्टर लगाए
कुछ वादे किए
और मैंने तुम्हें वोट दिया
बस इतना ही हमारा रिश्ता है
इसके आगे कुछ नहीं
चुनाव के बाद
तुम अपने रास्ते
मैं अपने
मीडिया वालों का काम ही है मीमांसा करना
सो वे करेंगे
लेकिन मुझे
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
कि
कौन कौनसे वादे पूरे करता है
या नहीं करता
मेरे बच्चे
कल भी
अंग्रेज़ी, गणित, फिज़िक्स, केमिस्ट्री पढ़ते थे
आज भी पढ़ेंगे
कल भी कम्पीटिशन की तैयारी करते थे
आज भी करेंगे
सरकारें आती हैं
सरकारें जाती हैं
लेकिन हमारे सपने नहीं बदलते
बच्चे
कल बढ़े हो जाएँगे
कुछ कमाएँगे
घर बसाएँगे
और यह क्रम बस यूँही चलता रहेगा
हम कल भी
फ़िल्में देखते थे
आज भी देखेंगे
हम कल भी
क्रिकेट देखते थे
आज भी देखेंगे
हम कल भी
गाने सुनते थे
आज भी सुनेंगे
ये जीवन है
इस जीवन का
यही है, यही है, यही है रंग रूप
थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ
यही है, यही है, यही है छाँव धूप
ये ना सोचो इसमें अपनी
हार है कि जीत है
उसे अपना लो जो भी
जीवन की रीत है
ये ज़िद छोड़ो, यूँ ना तोड़ो
हर पल एक दर्पण है
(अंतिम पंक्तियाँ आनंद बक्षी की है)
17 फ़रवरी 2015
सिएटल | 513-341-6798
1 comments:
कविता उन लोगों के perspective से सही है जिनके पास basic amenities हैं। उन लोगों के जीवन में किसी सरकार के आने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। लेकिन अगर किसी के पास basics नहीं हैं और सरकार उनके लिए कुछ करे तो उन्हें ज़रूर फ़र्क पड़ेगा। अगर कोई झुग्गी में रहता है और नई सरकार झुग्गियों के demolition रोककर पहले यह सोचे कि यह लोग रहेंगे कहाँ; अगर कोई footpath पर सोता है और सरकार उन्हें रात गुज़ारने की जगह और एक कंबल दे; अगर किसी को अपनी मेहनत की कमाई में से दूसरों को "cut" देने पर मजबूर न होना पड़े - तो वो लोग अपने जीवन में कुछ राहत महसूस करेंगे। सबका experience उनकी situation पर depend करता है।
कविता में बहुत ही सुंदर गीत की lines हैं:
"ये जीवन है
इस जीवन का
यही है, यही है, यही है रंग रूप
थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ
यही है, यही है, यही है छाँव धूप"
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