लो हारे मोदी, लो हारे मोदी
एक्ज़िट पोल्स वालों के अनुमान हैं ये
गली-गली में हो रहे ऐलान हैं ये
वोट दिया, बहुमत दिया
कुछ और तो इनके पास नहीं
जो तुमसे थी माननीय मोदी
भगवान से भी थी वो आस नहीं
जिस दिन से हुए तुम प्रधानमंत्री
वादाखिलाफ़ी से बड़े परेशान हैं ये
सुनते हैं तुम्हारी दुनिया में
दो दिल मुश्किल से समाते हैं
क्या ग़ैर वहाँ अपनों तक के
साए भी न आने पाते हैं
ये दिल्ली है दिलवालों की
बेदिली को गए पहचान हैं ये
मोदी महोदय, आपकी ये हार
हार है आपकी राजनीति की
जो सच है उसे अब मान भी लो
ये हार है आपकी कूटनीति की
भाजपावाले क्यूँ बौखलाए हैं
क्या बात है क्यूँ हैरान हैं ये
(शैलेंद्र से क्षमायाचना सहित)
8 फ़रवरी 2015
सिएटल | 513-341-6798
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इस रचना की प्रेरणा घनश्याम गुप्ताजी की फ़ेसबुक अपडेट से मिली:
1 comments:
कल ही मन में बात आयी थी कि दिल्ली के election results पर आप कविता में कुछ तो कहेंगे :)
कविता अच्छी है। यह lines बढ़िया लगीं:
"सुनते हैं तुम्हारी दुनिया में
दो दिल मुश्किल से समाते हैं
क्या ग़ैर वहाँ अपनों तक के
साए भी न आने पाते हैं
ये दिल्ली है दिलवालों की
बेदिली को गए पहचान हैं ये"
बिना link के parody का original गाना guess नहीं हुआ। सोचा "छू लेने दो नाज़ुक होटों को" है मगर वो तो sahir का है। Please link दे दीजिये।
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