फ़ीते फट जाए तो जूते फेंका नहीं करते
आग लग जाए तो भुट्टे सेंका नहीं करते
जीवन है निर्धारित, जीवन है नियमित
कभी हम ऐसा तो कभी वैसा नहीं करते
जब फँसी हो कश्ती मँझधार में किसीकी
तो देते हैं सहारा, किनारा नहीं करते
अपनों से भी गिला क्या करता है कोई
कुछ होती हैं बातें जिन्हें छेड़ा नहीं करते
पिक्चर देखनी है तो मनपसंद देखो
एक न मिले तो दूजी देखा नहीं करते
राहुल उपाध्याय | 18 जुलाई 2015 | दिल्ली
4 comments:
आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में मंगलवार 21 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
कविता की हर दो lines meaningful हैं - उनका literal, simple meaning भी अच्छा है और गहरा meaning भी अच्छा है।
बढ़िया ।
badhiya lagi rachna ..
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