यह है ऊँची
वो था खुला
यह है बन्द
उसमें थी मेहनत
यह है आसान
वहाँ बालटी-बालटी
खींचते थे हम
इसमें टोंटी घुमाई
और बूँद-बूँद भर लो गागर
(हाँ पीना हो तो आर-ओ लगाओ
नहाना हो तो कोई बात नहीं )
अब क्या बताए
क्या सही और क्या ग़लत
बस एक बात है
कि
पहले
मन की सुनते थे
अब
नेता-अभिनेता-महात्माओं की सुनते हैं
जो उपर से आता है
जल्दी पकड़ में आता है
मन की गहराई से खींचने में
वक़्त लगता है
परिश्रम होता है
17 जुलाई 2015
दिल्ली
2 comments:
कविता में पुराने और नए का comparison अच्छा लगा। Last lines deep हैं:
"जो उपर से आता है
जल्दी पकड़ में आता है
मन की गहराई से खींचने में
वक़्त लगता है
परिश्रम होता है""!
Very Nice and deep
Post a Comment