Monday, July 6, 2015

चुप्पी न साधें



जब डूबता है सूरज
तब भी लगता है सुंदर
क्योंकि 
अंतिम क्षण तक 
वो देता है प्रकाश
अपने प्रत्याशित अवसान से
नहीं होता है हताश

होती है स्फूर्ति
होती है उर्जा 
भले ही कम
लेकिन चमकता है तब भी
दिशाहीन को दिशा
देता है तब भी

नेता, अभिनेता, राजनेता हैं जितने
कलाकार, पत्रकार, शिल्पकार हैं जितने
माता-पिता, भाई-बहन, आत्मजन हैं जितने
सहपाठी, सखा, सहकर्मी, पड़ोसी हैं जितने
सूरज से सीखें
और
अपने प्रत्याशित अवसान के भय से
चुप्पी न साधे

कि
दस साल हो गए हैं
और कुछ लिखा नहीं है
चित्रों में रंग भरे नहीं हैं
संगीत में शब्दों को पिरोया नहीं है
सुरों को कण्ठ से लगाया नहीं है
संगठन को सम्बोधित किया नहीं है
पड़ोसी को आमंत्रित किया नहीं है
सहकर्मी के हालचाल पूछे नहीं है
आत्मजनों को आत्मीय बनाया नहीं है
सखा को गले से लगाया नहीं है

राहुल उपाध्याय | 6 जुलाई 2015 | दिल्ली

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5 comments:

Anonymous said...

कविता हमें याद दिलाती है कि present moment बहुत कीमती है। यह सोच कर कि अब तो बहुत समय बीत चुका हैं, थोड़ा ही बाकी है , या यह सोच कर कि अभी तो बहुत समय बाकी है, जल्दी क्या है - हमें present moment को खो नहीं देना चाहिए। आज से लेकर आगे तक जितनी भी साँसें बाकी हैं उनको positive तरह use करना चाहिए।

Rahul Upadhyaya said...

From email:

जी l राहुल जी का सकारात्मक दृष्टिकोण देखकर प्रसन्नता हुई l

Rahul Upadhyaya said...

From email:

बहुत प्रतीक्षा के बाद एक सुन्दर और प्रेरक रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Rahul Upadhyaya said...

From email:

बहुत सुन्दर । इस दृष्टिकोण से बहुत सहमत होंगे ।

Rahul Upadhyaya said...

From email:

आदरणीय राहुल भाई ,ये हुई ना बात । आपने ये जोोसकारात्मक रूख अपनाया है मुझे आश्ववस्ति हुई है । आपके ह्रदयोद्गार अति सुन्दर व समाज कोो संगठित करने वाले हैं। शुभकामनाएँ!