आँखों पे चश्मा है
कानों में एयर पॉड्स हैं
हाथों में छुरी-काँटे हैं
पाँव पहले ही से नाकाम हैं
जूते-चप्पलों पर आश्रित है
एक नहीं दस-दस अलग-अलग प्रकार के हैं
इसे पहन कर बाथरूम नहीं जा सकते
इसे पहन कर बाग में नहीं
इसे पहन कर टेनिस नहीं खेल सकते
इसे पहन कर शादी में नहीं जा सकते
इसे पहन कर दफ़्तर नहीं
चश्मे भी एक नहीं कई हैं
दूर का
पास का
धूप का
एक बग़ैर लेंस का
अब हेडफ़ोन भी दस तरह के आने लगेंगे
एक अच्छी खबर सुनने के लिए
एक बुरी खबर सुनने के लिए
एक कुछ न सुनने के लिए
आत्मनिर्भर तो दूर
सभ्यता ने हमें ग़ुलाम बना कर रख दिया है
पूरा शरीर
कवच में क़ैद है
राहुल उपाध्याय । 21 अप्रैल 2024 । सिएटल
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