समंदर के अंदर
बूँदें हैं जितनी
मेरी प्रीत तुमसे
उनसे हैं दुगनी
तुम
उफनती हो
गरजती हो
बरसती हो
मुझ पर
और मैं निछावर
घायल सा
मादक सा
रहता हूँ तुम पर
मैं पाषाण हूँ तट का
खूँटे से बंधा
छीन लो मुझको
बाँहों में ले लो
नहीं चाहिए मुझे
किनारे का आश्रय
मुझे तो प्यारा
है साथ तुम्हारा
साथ उछलूँ
साथ डूबूँ
पल-पल संवरूँ
पल-पल बिखरूँ
न टूटना
न बिखरना
जीवन नहीं है
पाषाण का जीवन
जीवन नहीं है
राहुल उपाध्याय । 27 अप्रैल 2024 । सिएटल
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