ये न थी हमारी क़िस्मत
कि चार सौ पार होता
यदि और चरण होते
यही इंतज़ार होता
वो ज़माने भर के झंझट
वो बेरोज़गारी सारी
कहाँ आज हमको डँसतीं
यदि चार सौ पार होता
यूँ बुझे-बुझे न होते
दबे स्वर न आज होते
विजयी हो के भी हमको
नतीजा न नागवार होता
क्यूँ बदल गई ये दुनिया
गई हाथ से अयोध्या
जिसे पप्पू दुनिया कहती
न वो धारदार होता
न नीतिश की बाँह पकड़ते
न नायडू से बात करते
अपनी ही राह चलते
न कोई दावेदार होता
राहुल उपाध्याय । 10 जून 2024 । सिएटल
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