चार बचाए
सैकड़ों ढाए
हमको क्या
कोई जीए या जाए
दुख-सुख हैं मौसम जैसे
आते-जाते ही रहते हैं
जो एक बचाए, लाख गवाएँ
वो अवतार राम कहलाए
ख़ून-ख़राबे के अलावा कोई हल नहीं है
बात-बेबात पे लोग लड़े हैं
बातों से कभी कोई बात बनी नहीं है
हार-जीत के बिना कोई त्योहार नहीं है
रावण मरा दीवाली मन गई
कोई और मरा होली मन गई
राहुल उपाध्याय । 11 जून 2024 । सिएटल
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