तुम एक सुन्दर फूल हो
जो जिस बाग में है
वहीं रहे तो अच्छा है
मेरे घर में मुरझा जाओगी
तुम खुशबू हो
जिसे महसूस करने का
सबको हक़ है
तुम रोज़ फ़ोन करती हो
अच्छा लगता है
मगर अपना नहीं बना सकता
फ़ोन बंद हो जाएँगे
या फ़ोन करोगी भी तो अच्छा नहीं लगेगा
घर की मुर्ग़ी दाल बराबर बन जाओगी
आज तुम वह मुर्ग़ी हो
जो रोज़ सोने के अंडे देती है
आज 19 दिन हो गए
और तुम्हारी कोई खोज-खबर नहीं
माना कि मजबूरी है
मैं भी ठीक ही हूँ
इंतज़ार कर लूँगा
हफ़्तों का ही नहीं
महीनों का भी
फिर भी तुम्हारे बिना कुछ कमी सी है
मैं निर्मोही हूँ
किसी से कोई लगाव नहीं
न जाने क्यूँ तुमसे बेहद प्यार है
जबकि तुम पचास बार कह चुकी हो
कि तुम्हें नहीं है
कितना तरस रहा हूँ उन्नीस दिनों से
यही सुनने के लिए
कि तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है
राहुल उपाध्याय । 23 जून 2024 । सिएटल
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