Tuesday, July 2, 2024

सँपेरे

लोग कहते हैं कि

हम सँपेरे नहीं हैं 

हम विश्व गुरू हैं

फिर कहीं सात

तो कहीं एक सौ सात

मौत के घाट उतर जाते हैं 

तो बग़लें झांकने के सिवा कोई चारा नहीं बचता


लेकिन अड़ियल इतने हैं कि

आदत से बाज नहीं आएँगे 

बाबाओं को गले लगायेंगे 

आध्यात्म के नारे लगाएँगे 

गीता की क़सम खाएँगे 

प्राण प्रतिष्ठा में फूले न समाएँगे 


राहुल उपाध्याय । 2 जुलाई 2024 । सिएटल 



इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: