लोग कहते हैं कि
हम सँपेरे नहीं हैं
हम विश्व गुरू हैं
फिर कहीं सात
तो कहीं एक सौ सात
मौत के घाट उतर जाते हैं
तो बग़लें झांकने के सिवा कोई चारा नहीं बचता
लेकिन अड़ियल इतने हैं कि
आदत से बाज नहीं आएँगे
बाबाओं को गले लगायेंगे
आध्यात्म के नारे लगाएँगे
गीता की क़सम खाएँगे
प्राण प्रतिष्ठा में फूले न समाएँगे
राहुल उपाध्याय । 2 जुलाई 2024 । सिएटल
0 comments:
Post a Comment