हर शहर की ख़ूबसूरती
दो चार इमारतों तक ही सीमित है उसके बाद
फिर वही घर
जिनमें टीवी है
किचन है
कचरा है
जूठे बर्तन हैं
उन घरों में रहने वाले
बाशिंदे
इन इमारतों पर
पल दो पल भी निगाह नहीं डालते हैं मवेशियों की तरह
सुबह निकल जाते हैं
और शाम को रम्भाते हुए
लौट आते हैं
हाँ, मनुष्य हैं
सो घरों की दीवारों पर
चीख-चीखकर कहते हैं
कि देखो दुनिया कितनी ख़ूबसूरत है हम भी गये थे देखने
तुम भी जाना
राहुल उपाध्याय । 28 जुलाई 2023 । द हैग
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