Sunday, July 7, 2024

चाँद पर माहौल नहीं है

चाँद पर माहौल नहीं है 

चाँद से टूटा तार मेरा

दो बेडरूम का घर है काफ़ी 

बसा जहां संसार मेरा


हवा नहीं है, जीव नहीं है

मानवता की नींव नहीं है

रूखा-सूखा, धूल सना सा

किसी काम का कुछ भी नहीं है

रूप-नूर सब झूठी बातें 

ख़ुद का प्रकाश भी पास नहीं 

सदियों से जिसे जग ने पूजा

उसको है इंकार मेरा


जिसको चाहूँ, उसको चाहूँ 

किसी तरह की रोक नहीं है 

रिश्ते-नाते और बिरादरी 

किसी तरह की धौंस नहीं है 

अपना-अपना सबका जीवन 

सबको सबका ज्ञान बहुत

शिकवे-शिकायत मैं ना भेजूँ 

सबको भेजूँ प्यार मेरा


राहुल उपाध्याय । 7 जुलाई 2024 । सिएटल 


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3 comments:

Abhilasha said...

बेहतरीन रचना

रेणु said...

चाँद को ही नकार दिया कविवर! रोचक रचना! सच है चाँद की नीरस दुनिया से कहीं बेहतर है अपना सादा सा घर!!

आलोक सिन्हा said...

सुन्दर रचना