चाँद पर माहौल नहीं है
चाँद से टूटा तार मेरा
दो बेडरूम का घर है काफ़ी
बसा जहां संसार मेरा
हवा नहीं है, जीव नहीं है
मानवता की नींव नहीं है
रूखा-सूखा, धूल सना सा
किसी काम का कुछ भी नहीं है
रूप-नूर सब झूठी बातें
ख़ुद का प्रकाश भी पास नहीं
सदियों से जिसे जग ने पूजा
उसको है इंकार मेरा
जिसको चाहूँ, उसको चाहूँ
किसी तरह की रोक नहीं है
रिश्ते-नाते और बिरादरी
किसी तरह की धौंस नहीं है
अपना-अपना सबका जीवन
सबको सबका ज्ञान बहुत
शिकवे-शिकायत मैं ना भेजूँ
सबको भेजूँ प्यार मेरा
राहुल उपाध्याय । 7 जुलाई 2024 । सिएटल
3 comments:
बेहतरीन रचना
चाँद को ही नकार दिया कविवर! रोचक रचना! सच है चाँद की नीरस दुनिया से कहीं बेहतर है अपना सादा सा घर!!
सुन्दर रचना
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