Sunday, August 1, 2021

मेरी कमी को मैंने ताक़त समझा

मेरी कमी को मैंने ताक़त समझा

उसी कमी को उसने आदत समझा


होते रहते सबसे मतभेद मेरे

कभी न किसी को लानत समझा


आते जाते रहते ग़म सुबह-शाम

कभी न किसी को आफ़त समझा


जब भी किसी ने हिदायत दी

हिदायत को बस हिदायत समझा 

(हिदायत = सलाह)


लड़ना-झगड़ना नहीं रग में मेरे

छोड़ दिया तो उसने बग़ावत समझा


राहुल उपाध्याय । 1 अगस्त 2021 । सिएटल 

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3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बगावत समझा .... बहुत खूब ।बेहतरीन ग़ज़ल

कविता रावत said...

लड़ना-झगड़ना नहीं रग में मेरे
छोड़ दिया तो उसने बग़ावत समझा

.. बहुत खूब कही

अनीता सैनी said...

मेरी कमी को मैंने ताक़त समझा

उसी कमी को उसने आदत समझा..गज़ब 👌