रोका न जाए दिलदार
हाँ, हाँ जग ने किया है स्वीकार
लाख जतन किए
लाख दुआएँ माँगी
रोकूँ किसी को
स्वप्न दफ़न हुए
आग लगा दी मैंने
अपने किसी को
पीड़ा हुई अपरम्पार
अपने ही हाथों
अपने किसी को मैंने
राख किया है
उनकी बातें
उनके वादों को
याद किया है
आँसू भी आए कई बार
आखरी दुख दिया
आखरी दिन अब
दुख न वो देगा
जितना दिया बस
उतना दिया अब
सुख भी न देगा
सबसे किया नमस्कार
अपने जहां में
कोई नहीं अब
घाव भरेगा
मुझसे उतना
उससे भी आधा
प्यार करेगा
जो था वही था मेरा प्यार
राहुल उपाध्याय । 27 अगस्त 2021 । सिएटल
3 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहतरीन रचना
खूबसूरत वर्णन
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