जीवन जड़ में, जड़ जीवन में
परिवर्तित होता जाता है
पृथ्वी घूमे, हम भी झूमें
जग आनंदमय हो जाता है
किसकी किससे प्रीत यहाँ पर
सब क्षण-दो-क्षण के नाते हैं
अपना-पराया यहाँ कोई नहीं
सब कैमिकल की बातें हैं
दिखे पात्र दुखी चलचित्र में
मन द्रवित हो जाता है
जितना कभी किसी से न जुड़ा
दिल उससे जुड़ जाता है
मौसम-बन्धु-बान्धव-आदि
सब आते-जाते रहते हैं
दिल आता है, दिल जाता है
चलायमान सब रहते हैं
जीवन जड़ में, जड़ जीवन में
परिवर्तित होता जाता है
राहुल उपाध्याय । 21 अगस्त 2021 । सिएटल
3 comments:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 22 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर सृजन ।
हिंदी रचना संसार में अनुपम साहित्य। सुंदर और प्रेरणास्पद ब्लाग।
https://hindisuccess.com
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