कितनी जल्दी हम भूल जाते हैं
और उस दिन का जश्न मनाते हैं
जिस दिन लाखों का संहार हुआ था
रंग-बिरंगी कपड़ों में सज कर
जय-जयकार का गान सुनाते हैं
आज दुनिया के एक कोने में जो हो रहा है
एक दिन हमारे घर हुआ था
कितनी जल्दी हम भूल जाते हैं
आज किसी को कम हम आँक रहे हैं
कल हमें कोई कम आँक रहा था
आज जिनके दुख पर हम हँस रहे हैं
कल हम पर शायद कोई हँस रहा था
आज शरण की है आस में कोई
कल हम भी ऐसे भटक रहे थे
आज दुत्कार रहे हैं हम किसी को
कल हमें भी कोई धकेल रहा था
कितनी जल्दी हम भूल जाते हैं
राहुल उपाध्याय । 19 अगस्त 2021 । सिएटल
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