Sunday, August 22, 2021

इससे पहले कोई मौत मेरे इतने क़रीब नहीं हुई

इससे पहले कोई मौत मेरे इतने क़रीब नहीं हुई 

जितनी क़रीब 

मेरे घर में 

मेरे कमरे में 

मेरे पलंग से जुड़े पलंग पर

मेरे हाथ में लिए हाथ की हुई 


ऐसा लगता है 

जैसे मैंने ही

किसी ग़ुब्बारे से 

हवा निकाल दी हो

और ग़ुब्बारे को जलाकर भस्म कर दिया हो

ताकि कोई उसमें फिर से प्राण न फूंक सके


सारा घर ख़ाली-ख़ाली है 

कबाड़ से भरा


रूई जिन्हें बड़ा सम्भाल कर मम्मी रखती थीं

छोटी-छोटी प्यारी-प्यारी बत्तियाँ बनाया करती थीं 

अब किसी काम की नहीं 


दीपक मंजे हुए क़रीने से रखे हैं 

अब वे कभी प्रज्ज्वलित नहीं होंगे 


माचिस की तीली अब नहीं जलेगी 


ठाकुर जी न नहाएँगे, न धोएँगे 

न वस्त्र ही बदलेंगे


उन सब चीजों में 

जिनमें उनके प्राण बसते थे

अब निर्जीव है 


अब मुझे 

मौत से डर लगता है 

हो भी तो

मेरे घर में 

मेरे कमरे में 

मेरे पलंग से जुड़े पलंग पर न हो

मेरे हाथों में लिए हाथ की न हो


राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2021 । सिएटल 




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