इससे पहले कोई मौत मेरे इतने क़रीब नहीं हुई
जितनी क़रीब
मेरे घर में
मेरे कमरे में
मेरे पलंग से जुड़े पलंग पर
मेरे हाथ में लिए हाथ की हुई
ऐसा लगता है
जैसे मैंने ही
किसी ग़ुब्बारे से
हवा निकाल दी हो
और ग़ुब्बारे को जलाकर भस्म कर दिया हो
ताकि कोई उसमें फिर से प्राण न फूंक सके
सारा घर ख़ाली-ख़ाली है
कबाड़ से भरा
रूई जिन्हें बड़ा सम्भाल कर मम्मी रखती थीं
छोटी-छोटी प्यारी-प्यारी बत्तियाँ बनाया करती थीं
अब किसी काम की नहीं
दीपक मंजे हुए क़रीने से रखे हैं
अब वे कभी प्रज्ज्वलित नहीं होंगे
माचिस की तीली अब नहीं जलेगी
ठाकुर जी न नहाएँगे, न धोएँगे
न वस्त्र ही बदलेंगे
उन सब चीजों में
जिनमें उनके प्राण बसते थे
अब निर्जीव है
अब मुझे
मौत से डर लगता है
हो भी तो
मेरे घर में
मेरे कमरे में
मेरे पलंग से जुड़े पलंग पर न हो
मेरे हाथों में लिए हाथ की न हो
राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2021 । सिएटल
0 comments:
Post a Comment