Tuesday, August 24, 2021

चाँद छुआ, आफ़ताब छुआ

उसका सूरज 

मेरा सूरज 

एक है


उसका चाँद 

मेरा चाँद 

एक है


वो देखे 

उधर से

मैं देखूँ 

इधर से

कोण अलग

स्थान अलग

नज़र मगर एक है


वो हूर है 

मेरा प्यार है

प्यार का किया इज़हार है

उसने भी किया इकरार है 


नज़रों से मिली न नज़र कभी 

बस चाँद छुआ, आफ़ताब छुआ

जहाँ उसने छुआ, वहाँ मैंने छुआ


जिन आँखों को कभी देखा ही नहीं 

जब देखूँगा क्या मंजर होगा 

क्या खुलेंगी, क्या बोलेगी 

क्या भाव बड़ा सुन्दर होगा

वो छलकेगी या चमकेगी 

क्या खुशियों भरा वो घर होगा

क्या कोलाहल में क्या भीड़ में 

वो शांत शीतल मंदर होगा 

कुछ मन में तो कुछ बाहर होगा

या सब का सब अंदर होगा 


राहुल उपाध्याय । 24 अगस्त 2021 । सिएटल 


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