एक लौ बुझ गई
एक लौ जल रही
जो बुझ गई, वो याद है
जो जल रही, विषाद है
क्या यह इस देह की भूल है
या उस देह की भूल है
या देह की ही भूल है
और आत्मा का इसमें कोई हाथ नहीं
आत्मा जो जले न कटे, उससे क्या लाभ है
जो न फले-फूलें, न सूखे-सूखाए
जिसका न कोई मुक़ाम है
ऐसी आत्मा से मेरा न कोई काम है
कहने को अमर है
पर मरण सी सुसुप्त है
राहुल उपाध्याय । 18 अगस्त 2021 । सिएटल
1 comments:
अति गहन ।
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