Thursday, August 19, 2021

पराया एक कलम भी दे दे

पराया एक कलम भी दे दे

अच्छा लगता है

अपना कोई खून भी दे दे

कम पड़ता है 

जीवन का यही निचोड़ है यारो

अपेक्षाओं से ही जग चलता है 


न बदला है, न बदलेगा 

अपेक्षाओं का दौर यूँही चलेगा

न बदला कोई, न बदलोगे तुम

लाख साधु-संत-वेबिनार सुन लो

जीवन का स्रोत न सूखेगा


राहुल उपाध्याय । 19 अगस्त 2021 । सिएटल 



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