पराया एक कलम भी दे दे
अच्छा लगता है
अपना कोई खून भी दे दे
कम पड़ता है
जीवन का यही निचोड़ है यारो
अपेक्षाओं से ही जग चलता है
न बदला है, न बदलेगा
अपेक्षाओं का दौर यूँही चलेगा
न बदला कोई, न बदलोगे तुम
लाख साधु-संत-वेबिनार सुन लो
जीवन का स्रोत न सूखेगा
राहुल उपाध्याय । 19 अगस्त 2021 । सिएटल
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