महँगा खाना खाने के लिए
महँगे कपड़े पहनते हैं
और वो दो जून की रोटी में
दिन रात एक कर देते हैं
इसमें कुछ ग़लत नहीं है
यह सोच ही ग़लत है
और ऐसा भी नहीं
कि यह बात सेठ-सेठानी की है
हम-आप भी इसमें शामिल हैं
हम में भी महँगा पहनने की
महँगा खाने की ख़्वाहिश है
अनुष्का ही नहीं
जो लाखों का लहंगा पहनती है
हम-आप भी इसमें शामिल हैं
मोदी जी ही नहीं
जो लाखों का सूट पहनते हैं
हम-आप भी इसमें शामिल हैं
ये ख्वाहिश है कि हवस है
जिसके आगे हम बेबस हैं?
समाज सेवा भी करनी है
और रोलेक्स घड़ी भी पहननी है
क्या ख़ूब कमाना
और उसे जैसे चाहे खर्च करना
बुरा है?
क्या अच्छा है
क्या बुरा है?
निर्णायक कौन?
रोज़ गाय काट कर के खाना
समृद्ध और विकसित देशों में
वहाँ के प्रणेताओं के लिए
समाजसेवियों के लिए
बुद्धिजीवियों के लिए
जनसामान्य के लिए
बुरा नहीं है
उन देशों से
उन प्रणेताओं से
उन समाजसेवियों से
उन बुद्धिजीवियों से
हाथ मिलाना
उन्हें गले लगाना
उनके धन को मन्दिर में, पूजा में इस्तेमाल करना
बुरा नहीं है
न कुछ अच्छा है, न बुरा है
बस क़ानून तोड़ों तो ग़लत है
वरना सब सही है
महँगा खाना खाने के लिए
महँगे कपड़े पहनते हैं
और वो दो जून की रोटी में
दिन रात एक कर देते हैं
इसमें कुछ ग़लत नहीं है
यह सोच भी ग़लत नहीं है
राहुल उपाध्याय । 24 अगस्त 2021 । सिएटल
2 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति
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