प्राण पखेरू उड़ जाए तो
ढाँचा टूटता जाता है
सर झुकाए आता है जो
सर उठाए न जाता है
आता है तो बेबस सा
नन्हा-मुन्ना होता है
हट्टा-कट्टा भी जाए तो
गाते-बजाते न जाता हैं
अपना-अपना रस्ता इंसां
जीवन में चुन ले भी तो
अंत समय में गंतव्य सभी का
तय एक हो जाता है
इसकी यादें, उसकी बातें
सब यही रह जाती हैं
किसने किसको बाँधा है
कौन कहाँ कुछ ले जाता है
हम बतलाए तुम भी सुन लो
जीवन है एक अनमोल नगीना
जब तक है ये तब तक है ये
बाद नज़र नहीं आता है
राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2021 । सिएटल
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