मैं मर तो उसी दिन गया था
जिस दिन तुमने मुझे अमिताभ
और ख़ुद को रेखा बताया था
फूलों की वादी में
अपनी गोद
मुझे सुलाया था
अपने हाथों
बर्थडे केक खिलाया था
एक नहीं
सौ-सौ हाथ मुझे जगाया था
अपना आँचल मुझे ओढ़ाया था
हर गाने को अपना गाना बनाया था
ये ब्रेकअप?
ये तो हमारे किरदार में शामिल है
हमारी कहानी का बेहतरीन अंग है
हमारी प्राणशक्ति है
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घर जाकर
खाना खा लेना
पोर्ट्रेट खिंचवाकर
दीवाली की शुभकामनाएँ भेज देना ही
जीवन नहीं
जीवन
यह भी है
कि वह है
और उससे मिल नहीं सकते
पता मालूम है
रस्ता भी जाना-पहचाना है
और उधर मुड़ नहीं सकते
बल्कि
यही
जीवन है
मैं मर तो उसी दिन गया था
राहुल उपाध्याय । 12 जनवरी 2022 । सिएटल
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